राष्ट्रहित में संघर्ष करा रहा हू जवाब तलब भी होते हैं

 

राष्ट्रहित में संघर्ष करा रहा हू जवाब तलब भी होते हैं पर मैं जवाब देता हूँये तो नेट प्रक्टिक्स है भाई। एक व्यक्ति ने सवाल किया भाई किस के लिए लड़ रहे हो अन्नाजी के लिए या बाबाजी के लिए या भाजपा के चमचे हो मैंने कहा बन्धु मैं अपने लिए लड़ रहा हूँ, राष्ट्र के लिए लड़ रहा हू। बोले आज कल बड़े क्रन्तिकारी पैदा हो गए है नए नए मैंने कहा वो तो होंगे ही ये भूमि ही क्रन्तिकारी है जब खाद ही ऐसा है तो अंकुर तो फूटेंगे ही, पर फूटेंगे वो ही जो अच्छी किस्म के बीज हैं। बोले मेंडक की तरह उछल रह हो बड़े, पर याद रखो मेंडक की एक हद होती है। मैंने कहा जी मेंडक से ही सिखा है उस हद्द तक कुद्दो जहाँ तक जान लगा सको। वो बोले भाई मेंडक सिर्फ टर्टराते है, मैंने मैंने कहा आप भी जाओ टर्टराने से ही क्रांति जाएगी इतना काफी है। बोले बड़ा जवाब तलब करते हो , कब से आया ये जोश ,पहले कहा थे मैंने कहा अभी शुरुआ की है , अभी जागा हू मैं, हतोत्साहित करे। बोले कहाँ तक जाओगे ? मैं बोला संघर्ष की कोई सीमा और हद्द नहीं होती बोले क्या मिलता है तुम्हे ? मैं बोला सुकून मिलता है दायित्व पूरा करके बोले मेरा मतलब है तुम क्या कमाते हो ...मैंने कहा वैभव और सुकून। बोले धन्धा क्या करते हो ? मैं बोला रोजी के लिए कुछ भी जो नैतिक होता है और जिसकी इज़ाज़त जमीर देता है ..लेकिन राजनैतिक धन्धा नहीं करता। बोले कहाँ से आया जज्बा? मैंने कहा खून में है और परिस्थितियो ने तराशा है। बोले इससे क्या फायदा होगा तुम्हे? मैंने कहा मैं सौदागर नहीं हूँ जो अपना फायदा देखूं वो फिर बोले ...इसका अंजाम पता है मैं बोला जिसको आप अंजाम कहते हो वो ही तो मंजिल है ...इसके बाद कुछ नहीं बोले ..पर मैं बोला भाई अब आप भी बोल दो” वन्दे मातरम !

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